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अब इंकलाब जरूरी है

चीख चीख रोता है मेरा दिल भारत के हालातों पर। मेरी कलम नहीं लिख पाती गीत प्रेम मुलाकातों पर। मैंने भारत माता को अक्सर रोते हुए देखा है। और वतन की सरकारों को सोते हुए देखा है। सरकारें जो पूरे भारत वर्ष की भाग्य विधाता है। सरकारें जो संविधान की रक्षक और निर्माता है। सरकारें जो वतन की हिफाजत खातिर बुनी गई। सरकारें जो जनता हेतु जनता द्वारा चुनी गई। सरकारें जो संरक्षक है देश में लोकतंत्र की। सरकारें जो शिक्षक है कत्र्तव्यों के मंत्र की। सरकारें जो जनता के सेवक का पर्याय है। सरकारें जो उम्मीद है, आशा है, न्याय है। सरकारें जो परिभाषा है वतन के विकास की। सरकारें जो अहसास है भरोसे और विश्वास की। सरकारें जो सच्चाई और देशप्रेम की मिसाल है। सरकारें जो अराजक लोगों के लिए महाकाल है। आज वतन में वही सरकारें गुण्डागर्दी करती है। रक्षक ही भक्षक बन बैठे, जनता इनसे डरती है। खादी और खाकी दोनों ही अब मर्यादा से दूर हुए। चरित्रहीन नेता बन बैठे ,दौलत के नशे में चूर हुए। जो नेता संसद में देश की इज्जत उछाला करते है। और देश की आंखो में अक्सर मिर्च डाला करते है। भोले भाले लोग यहां के भा...

अब इंकलाब जरूरी है

सिसक सिसक कर रो रही है मेरी भारत माता आज। बिलख बिलख कर रो रहे हैं संविधान निर्माता आज। तड़प तड़प कर रोता होगा गांधी सुभाष का दिल भी आज। चीख चीख कर रोते होंगे भगतसिंह,बिस्मिल भी आज। रोती होगी गंगा जमना,रोते कश्मीर-हिमालय आज। रोते होंगे मंदिर मस्जिद,रोते सभी देवालय आज। रोती होगी कन्याकुमारी,रो रही गौहाटी आज। रो रहा है मरू प्रदेश भी,रो रही चैपाटी आज। आज देश में चारों ओर गुण्डों का प्रशासन है। और जूती की नोक पर पड़ा हुआ अनुशासन है। आज शास्त्री की पीठ में छुरी भोंक दी जाती है। और संसद की आंखो में मिर्च झोंक दी जाती है। बहुत सह लिया हम लोगों ने, अब बदलाव जरूरी है। चुप रहने से काम न चलेगा, अब इंकलाब जरूरी है। आज संसद चला रहे है गुण्डे तस्कर और डाकू। हाथापाई, मारपीट, छीनाझपट्टी और चाकू। कोई स्पीकर की टेबल का माईक उखाड़ चला जाता है। और सदन की सम्पत्ति के कागज फाड़ चला जाता है। संसद स्थगित करने को अब बहाने बनाए जाते है। पानी की तरह जनता के रूपए बहाए जाते है। राजनेता बर्बाद कर रहे है मेरे भारत देश को। और बदनाम किया जा रहा है खादी वाले वेश को। आज वतन के लोग यहां के नेताओं से त्रस्त है। लेकिन युवा पीढी...

यादें

पिछली पोस्ट पर बहुत बड़े बड़े ब्लागरों के कमेण्ट प्राप्त हुए तो दिल में कुछ और नया लिखने की इच्छा जगी। तो कल रात को एक छोटी सी कविता और लिखी अब ये तो पता नहीं कि इसे क्या कहते है। कहीं से सुना था कि ये कुण्डली है खैर जो भी हो जो दिल में आया लिख दिया देखकर बताइएगा कैसी लगी पोस्टकार्ड का गया जमाना, बीती बातें तार की। फैक्स हुआ ओल्ड फैशन, टेलीफोन चीज बेकार की।। टेलीफोन चीज बेकार की, मोबाईल क्या आया। कैमरा, टार्च और अलार्म, सब का हुआ सफाया।। सब का हुआ सफाया, घड़ी पता नहीं कहां खोई। कैसेट बिचारी बैठ के, बंद कमरे में रोई।। बंद कमरे मे रोई, टेप रिकार्डर अब कौन बजाए। रेडियो के आगे बैठ कर, अब महफिल कौन सजाए।। अब महफिल कौन सजाए, चीजें आई जब नई नई। कौन जाने और क्यों जाने, टेलीफोन डायरी कहां गई।। ‘लक्ष्य’ जमाना बदल रहा, अब बस यादें रह जाएगी। कभी चुपके से कानों में, जो अपनी कहानी कह जाएगी।। -लक्ष्मण बिश्नोई और अब अपडेट समीर लाल जी समीर ने इस कविता को सम्पादित करके कुछ यूँ शुद्ध कुंडली का रूप दिया पोस्टकार्ड का गया जमाना, बीती बातें तार की। फैक्स पुरानी बात हो गया, फोन चीज बेकार की।। फ...

बापू

एक बापू गांधी थे, दूजे बापू आप। वो सत्य अहिंसा के साधक, आप पाप के बाप।। आप पाप के बाप, शर्म लज्जा सब खो गई। हे राम की वाणी अब, हाय राम हो गई।। हाय राम हो गई, ढोंगी हुए सब महात्मा। अधर्म पैर पसारता, धर्म का हुआ खात्मा।। धर्म का हुआ खात्मा, वासना चारों ओर। मुख में हरि ओम जपते, मन में बैठा चोर।। मन में बैठा चोर, रावण को देते टक्कर। जर जोरू और जमीन के रोज चलते चक्कर।। कहता लक्ष्मण बात यह, यही सबसे बड़ा रोग। ऐसे ढोंगी बाबाओं को, फिर भी पूजते लोग।।

कॉमिक्स के लिए वेब पता

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एक बात पता है  दोस्तों, मुझे कॉमिक्स पढने का बहुत शौक है.  सो मैं नेट पर तरह तरह की कॉमिक्स के लिए वेब साईट सर्च करता रहता हूँ.  अभी थोड़ी देर पहले मुझे एक ऐसे वेब साईट का पता चला है जहाँ बांकेलाल, भोकाल, नागराज, चाचा चौधरी, पिंकी आदि कॉमिक्स बहुत अच्छे तरीके से सेट की हुई और बहुत बड़ी संख्या में मौजूद है

ई बुक्स (कॉमिक्स) का एक संग्रह

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दोस्तों मैं आज फिर हाजिर हूँ एक छोटी लेकिन उपयोगी जानकारी लेकर. आज मैं आपके लिए एक ऐसी वेबसाइट की जानकारी लेकर आया हूँ जिस पर से आप बांकेलाल, परमाणु, नागराज आदि के कॉमिक्स पढ़ सकेंगे तथा अपने बचपन की यादो को ताजा कर सकेंगे. वैसे तो इन कॉमिक इस वेबसाइट के बारे में जानने के लिए अधिक पढ़े पर क्लिक करे.

ऑनलाइन सुने विविध भारती

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आप भी मेरी तरह इंसान...........................अरे रे ये तो मैं गाना लिखने लगा. मैं तो लिखना चाह रहा था कि आप भी मेरी तरह विविध भारती के शौकीन होंगे। दरअसल मैं आज आपके लिए वेबसाईट ही ऐसी लाया हूं कि गाना तो बरबस ही याद आ गया। विविध भारती तो आपने खूब सुना होगा ना।