आओ वृक्ष लगाएं हम
प्रत्येक प्रसून-पत्र जिसके मानुष हित में न्यौछावर हैं, जिसकी शाख प्रशाख तले छाया पाते यायावर हैं, जिसके सुरभित कुसुम सदा ही मान बने, सम्मान बने। जिसके होने से ही खेत बने खलिहान बने, उद्यान बने। जिसने मनुज को प्राणवात सा जीने का आधार दिया, जिसके झुरमुटों ने मां वसुधा के आंचल का श्रृंगार किया, जिसकी छवि छटा ही मनमोहक और मतवाली है। जिसकी शस्य श्यामल कांति मन को छूने वाली है। जिसने नभचरों को निवास दिया,रहवास दिया। फल-फूल दिए,उल्लास दिया,हुल्लास दिया। अपने उत्पादों से पालन पोषण का विश्वास दिया। उपकारों से समृद्ध सभ्यताओं का इतिहास दिया। पुराण जिसके पत्र पत्र में विबुधों सा विश्वास जताते हैं, मूल छाल और डाल डाल में त्रिमूर्ति का वास बताते हैं। जिसके संवर्द्धन से दस पुत्रों के पालन सा पुण्य मिले, जिसकी छांव तले जगत को दशमलव और शून्य मिले। जिसकी छांव तले ही सनातन-बौद्ध-जैन-से पंथ बढ़े। जिसकी छांव तले ऋषियों ने उपनिषदों-से ग्रंथ गढ़े। बाईबिल जिसको परमेश्वर की अनुपम देन कहती है। जिसे काटने की मनाही पैगम्बर के फरमानों में रहती है। ऐसे हरे वृक्ष के सरंक्षण का उत्तरदायित्व...