खेजड़ली बलिदान कथा
अरे! जब राजमहल बन रहा है और उसका चूना पकाने के लिए लकड़ियाँ चाहिए, तो राजा अपने राज्य में चाहे जहां से लकड़ी कटवाए! बिश्नोई कौन होते हैं रोकने वाले ? दीवान गिरधरदास ने राजा अभयसिंह को उसकी शक्तियाँ याद दिलाई। राजा असमंजस में खड़ा रहा! दीवान ने उसे अपनी युक्तियों पर विश्वास करने को कहा। बिश्नोईयों को डराने धमकाने के लिए सेना साथ ले जाने की अनुमति मांगी और फिर से खेजड़ली की ओर चला आया। दीवान दो दिन पहले भी आया था। तब उसने कहा था कि अगर गांव के लोग मिल कर उसे कुछ पैसे दे देते हैं तो वो लकड़ियों की व्यवस्था कहीं और से कर लेगा। दीवान को लगा कि अपने पेड़ बचाने के लिए गांव वाले उसे इतनी सी भेंट तो चढ़ा ही देंगे। लेकिन गांव वालों के लिए तो ये सिद्धांतों का संघर्ष था। सिद्धांतों के संघर्ष में साध्य और साधन दोनों की पवित्रता बने रहना अनिवार्य होता है। ऐसे में खेजड़ली गांव की ही एक बिश्नोई नारी अमृता ने आगे बढ़ दीवान को दो टूक जवाब दे दिया- दाम दिया दाग लगे, टको नी देवां डाँण। रिश्वत क्यों दें ? रिश्वत के लिए एक टका भी नहीं मिलेगा! दीवान भड़क उठा। राजपुरुष होने की धौंस जमाई और सबक सिखाने की धमकी ...