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सोना हिरणी

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ये है हमारी प्यारी सोना।  इसकी माँ इसे जन्म देते ही श्वानों का शिकार बन गई पर गांव के कुछ लड़के इसे बचा लाए थे। मारवाड़ में दूजी जातियों के लोग घायल हिरणों को बिश्नोईयों की ढ़ाणी छोड़ आते हैं, ज्यों मेले में खोया कोई बच्चा घर पहुंचा रहे हों। उन लड़कों की पहचान मेरे काका के घर थी, सो वे मृग शावक काका को सौंप निश्चिन्त हुए।  काका के पोते-दोहिते यानि मेरे भतीजे-भांजे बड़े ऊधमी हैं। उन्होंने अपने मन से किया तो लाड कोड ही पर बिल्ली की गुदगुदी चूहे की मौत। उन के लूमने झूमने से छौने का कलेजा हिल गया। डर से मर जाना हिरणों में आम बात है। काका को लगा कि यहाँ रहा तो यह जीव नहीं बचेगा। इस तरह इस शावक का नया ठिकाना हमारा घर तय हुआ। बच्चों ने रोष किया, पैर पटके पर दो तीन दिन बाद साथ खेलने देने की शर्त पर समझौता हो गया।  घर लाकर मृग शिशु मैंने मम्मी को सम्भलाया। गोद में लेते ही मम्मी ने नाम रख दिया- सोना। मम्मी और पूजा दोनों ही किसी जीव का नाम रखते वक़्त कुछ सोचते नहीं है। सीधा एक ही नाम लेते हैं- सोना। गाय की बछिया भी सोना है, गेट पर बैठी कुतिया भी सोना है। घर में सुबह शाम सिर्फ दूध पीने के टाइम मुँह दिखान