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अनबोलों की बीमारी

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 अनबोलों की बीमारी बात तब से शुरू होती है, जब आधे अफ्रीका पर अंग्रेज़ी राज था। केपटाउन से काहिरा तक। आज के ज़ाम्बिया-ज़िम्बाब्वे देश तब उत्तरी - दक्षिणी रोडेशिया कहे जाते थे। एक हीरों की खानों का ठेकेदार हुआ था सेसिल रोड्स नाम का। ठेकेदारी में मोटा माल कमा कर वह अफ्रीका की सियासत में भी बड़ा नाम रहा। जहाँ उसकी कम्पनी ने राज किया, वही जगह अंग्रेजों के लिए रोडेशिया हुई। यहीं, उत्तरी रोडेशिया में साल 1929 की गर्मियों में मवेशियों में एक नई बीमारी आई। पीढ़ियों से पशु पालने वाले लोगों ने भी ऐसा कोई रोग पहले देखा सुना नहीं था। इस के मरीज़ मवेशियों के पूरे शरीर पर उभरी हुई छोटी छोटी घुण्डियाँ दिखने लगती थी। जो हफ़्ते - दस दिन तक बनी रहती थी। चमड़ी में इन उभारों को देख वहाँ के मवेशियों के डॉक्टरों को लगा कि हो न हो, कीड़ों-मकोड़ों के काटने से सूजन आई है।   चमड़ी के रोगों के लिए अंग्रेज़ तब 'डुबकी' को रामबाण माना करते थे। डुबकी यानि संखिये ज़हर (आर्सेनिक) घुले पानी में गायों को गोता लगवाना। इस के लिए वहां की सरकार गांव खेड़ों में लगभग तीन फीट चौड़े और पांच फीट गहरे नाले बनवाती थीं। इन नालों में आर्सेन