संदेश

सपनों को मरने मत देना

तेज आँधियों को दिये के, प्राण कभी हरने मत देना। सपनों को मरने मत देना।। गगरी फूटी, नई बनाओ। माला टूटी,फिर से सजाओ। नन्हें कदम जब बढ़ना चाहें, पकड़ अंगुली, हिम्मत बढ़ाओ। चलना सीख रहे बच्चे को गिरने से डरने मत देना। सपनों को मरने मत देना।। धूप नहीं,उजियारा देखो। दुनिया से कुछ न्यारा देखो। तूफानों से कांपे जगत जब, पार कहीं किनारा देखो। भँवरों से भी भिड़ जाने दो, कश्ती खड़ी करने मत देना। सपनों को मरने मत देना।। ----> लक्ष्मण बिश्नोई 'लक्ष्य'

मेरे जीवन की हिस्सेदार हर नारी को समर्पित

जगती में जब मेरा जीवन, आहत अकुलाए आघातों में। क्लांत कलेजा कूक पड़े जब, दु:ख की चुभती बरसातों में। जब मन के प्रकाशित कोनों में, स्याह अंधेरा जम जाए। जब प्रगति पथ पर जीवन रथ, खा हिचकोले, थम जाये। उमंग भरी इन आँखों में मेरी, यह दृश्य जो फिरा कभी- शिखरों पर बैठा मैं, गर्त में अभी गिरा,हाय!गिरा अभी तब तुम आना, प्रेरक बनकर, उम्मीदों की सौगात लिए। तब तुम आना, प्रथम किरण सी, मनमोहक प्रभात लिए। तुम दीपक बनकर, मुझको, जग में तम से लड़ना सिखला देना। कर सारथ्य जीवन रथ का, राह नई तुम दिखला देना। मेरे तुम पर विश्वासों को, साबित करना तुम सत्य सदा। सफल पुरुष की शक्ति नारी, सत्य रहे यह तथ्य सदा।। ---> लक्ष्मण बिश्नोई लक्ष्य

आओ वृक्ष लगाएं हम

प्रत्येक प्रसून-पत्र जिसके मानुष हित में न्यौछावर हैं, जिसकी शाख प्रशाख तले छाया पाते यायावर हैं, जिसके सुरभित कुसुम सदा ही मान बने, सम्मान बने। जिसके होने से ही खेत बने खलिहान बने, उद्यान बने। जिसने मनुज को प्राणवात सा जीने का आधार दिया, जिसके झुरमुटों ने मां वसुधा के आंचल का श्रृंगार किया, जिसकी छवि छटा ही मनमोहक और मतवाली है। जिसकी शस्य श्यामल कांति मन को छूने वाली है। जिसने नभचरों को निवास दिया,रहवास दिया। फल-फूल दिए,उल्लास दिया,हुल्लास दिया। अपने उत्पादों से पालन पोषण का विश्वास दिया। उपकारों से समृद्ध सभ्यताओं का इतिहास दिया। पुराण जिसके पत्र पत्र में विबुधों सा विश्वास जताते हैं, मूल छाल और डाल डाल में त्रिमूर्ति का वास बताते हैं। जिसके संवर्द्धन से दस पुत्रों के पालन सा पुण्य मिले, जिसकी छांव तले जगत को दशमलव और शून्य मिले। जिसकी छांव तले ही सनातन-बौद्ध-जैन-से पंथ बढ़े। जिसकी छांव तले ऋषियों ने उपनिषदों-से ग्रंथ गढ़े। बाईबिल जिसको परमेश्वर की अनुपम देन कहती है। जिसे काटने की मनाही पैगम्बर के फरमानों में रहती है। ऐसे हरे वृक्ष के सरंक्षण का उत्तरदायित्व...

नव भारत

उमंग,उत्साह और स्फूर्ति,जन-जन में सृजित करें। चलो युवानों, वीर जवानों ! नव भारत निर्मित करें। हे मतवालों, हिम्मतवालों, नव भारत निर्मित करें। विवेकानंद सा तप हमीं है,गुरू नानक सा जप हमीं है। गांधी की अहिंसा भी हम हैं,प्रतिशोध की हिंसा भी हम हैं। मीरा जैसी भक्ति हम हैं,हनुमान सी शक्ति हम हैं। देवदत्त,पांचजन्य भी हम हैं,महाप्रभु चैतन्य भी हम हैं। हम पतंजलि के योग ध्यान हैं,गौतम बुद्ध का कैवल्य ज्ञान हैं। हम वीर शिवा-से बलशाली हैं,जगदम्बा,दुर्गा,महाकाली हैं। कृष्ण कन्हैया लाल हमीं हैं,दशानन का काल हमीं हैं। भगवद् गीता के ज्ञाता हम हैं,नव भारत निर्माता हम हैं। आदर्श हमीं देते आए हैं,नाव हमीं खेते आए हैं। फिर क्यों छा रही निराशा, उत्साह हीनता और हताशा। क्यों सोए हो,निराश पड़े हो, हिम्मत करो, उठ खड़े हो। पूरे करें स्वप्न तिलक के, कोई ना सोये रो बिलख के, प्रताप शिवा सा स्वाभिमानी, बनें हर इक हिन्दुस्तानी। बनें फिर से जगद्गुरू हम, गौरवमयी वर्तमान बनाएं। गंगा जमुनी तहजीब वाला, प्यारा हिन्दुस्तान बनाएं। उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में,अपना सर्वस्व अर्पित करें। चलो युवानों, वीर जवानों!नव भारत न...

नारी......

हर रोज कई तितलियों के पंख मरोड़े जाते हैं। हर रोज किसी हिरणी पर कुत्ते छोड़े जाते हैं । हर रोज कई कलियों को माली खुद मसल देता है। हर रोज किसी चिड़िया के अरमां गिद्ध कुचल देता है। रोज कहीं दामिनी को भेड़िये नोंच नोंच खा जाते हैं। देख अकेली कोयल कौए उठा चोंच आ जाते हैं। कहीं छह माह की बेटी की इज्जत से खेला जाता है। पहली कक्षा की बच्ची को धंधे में ठेला जाता है। नन्ही बिटिया अब बापू संग रहने से कतराती है। भाई का चेहरा देख कर भी मन ही मन घबराती है। नारी को वस्तु बतलाने का जतन रोज होता जाता है। स्त्री पूजा वाली संस्कृति का पतन रोज होता जाता है। जहाँ द्रोपदी के चीर हरण पर महाभारत हो जाती थी। और सीता के अपहरण पर लंका गारत हो जाती थी। जहाँ पद्मावती न दिखलाने को रतनसिंह अड़ जाते थे। अस्मिता की रक्षा खातिर खिलजी से लड़ जाते थे। उस भारत में ये हाल कि दुष्कर्मियों का राज हुआ। बेटी मार लटकाने वालों के सिर मुखिया का ताज हुआ। नेताओं को परोसी बेटी मुट्ठी कस कर रह जाती है। लोकलाज के नाम सारे कुकृत्यों को सह जाती है। ऐसे हालातों में भी प्रशासन कुछ नहीं कर पाता है। इन लोगों का रौ...

Vijay : The Street Child (Story of an Orphan Boy)

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छुट्टियों में कुछ नया करने का जोश, अनाथ विजय की कहानी, 80 रूपए की डिजिटल कैसेट, दोस्त के दोस्त से उधार लिया कैमरा, एंड्राॅईड में रिकार्ड की गई आवाज और घर पर की गई एडिटिंग। कुछ इस तरह बनी यह शाॅर्ट फिल्म। अपनी तरफ से पहला प्रयास था तो ज्यादा उम्मीदें तो मैंने रखी नहीं थी। खैर, जैसी भी बनी है, आपके सामने है। देखिए, राय दीजिए, अच्छी लगे तो शेयर भी कीजिए। शायद किसी के दिल पर असर कर जाए। :)

बागी होती बंदूकें

कैसे गाऊँ जैजैवन्ती,दरबारी और मल्हार को। कैसे गाऊँ बसंत बहारें, कैसे गाऊँ श्रृंगार को। यहां गांवों में रोते दिखते झुग्गी छप्पर झोंपड़ियाँ। सूखे कांटे जैसे चेहरे, भूख से ऐंठी अंतड़ियाँ।। पेड़ पर लटकी लाशें दिखती भूमिपुत्र किसानों की। एक तिहाई जनता भूखी, मोहताज दानें दानों की। दूर देशों में छुपाई जाती कालेधन की संदूकें। इन्हीं कारणों से वतन में बागी होती बंदूकें। ऐसे हालातों में शब्दों में प्रीत नहीं ला सकता मैं। शोकसभा में श्रृंगार के गीत नहीं गा सकता मैं।। मैंने भारत माता के दिल के छाले देखें हैं। बुद्धिजीवियों की जुबान पर लटके ताले देखें है। मैंने सिंहासन दरबारों को निष्ठुर होते देखा है। वीर शहीदों की रूहों को छुप छुप रोते देखा है। जहर बोती सियासत की कैसे मैं जय कार करूं। हत्यारों को सिंहासन पर कैसे मैं स्वीकार करूं। मैं युवाओं को इंकलाब की राग सिखाता जाऊँगा। धवल खादी के दामन के दाग दिखाता जाऊँगा। देशद्रोहियों के वंदन की रीत नहीं ला सकता मैं। शोकसभा में श्रृंगार के गीत नहीं गा सकता मैं। >> लक्ष्मण बिश्नोई "लक्ष्य"