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फौजी जो था जुनूनी खोजी

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 इस महीने अहा ज़िन्दगी में..... उन दिनों काशीनरेश चेतसिंह का दीवान बाबू जगतसिंह अपने नाम पर जगतगंज का बाज़ार बनवा रहा था। बनारस से दो-ढाई कोस बाहर सारनाथ नाम के स्थान पर एक टीले के पास उजाड़ों का एक घेरा था। उस जगह उसने कुछ खम्भे गिराकर कमठे के लिए ईंट भाटे उठवाए। इस दौरान वहां उसके कामगरों को हरे मार्बल की एक मंजूषा मिली। इस पिटारी में एक ओर डिबिया थी , जिसमें कुछ अस्थियां और कुछ मोती पड़े थे। दीवान ने अस्थियां ससम्मान गंगाजी में बहा दी और डिब्बी वहां के एक अंग्रेज अधिकारी डंकन को सौंप दी। धर्मभीरु मजूरों ने भी दूजी चीजों को हाथ लगाया नहीं। इस बात पर शहर में चर्चे हुए तो काशी के वासियों का ध्यान इस स्थान की ओर गया। यहां कुछ खम्भे, एक स्तूप और एक चौखण्डी इमारत थी। हिन्दुओं ने तो इस जगह को लेकर कोई खास कुतूहल नहीं दिखाया, लेकिन बनारस के जैनी अंग्रेज़ अफसरों के पास पहुंच गए।  सारनाथ ग्यारहवें जैन तीर्थंकर श्रेयंसनाथ की जन्मभूमि है। सो, तब वहां के दिगम्बरों और श्वेताम्बरों में खेंचतान शुरू हो गई थी। दोनों दावा करते थे कि यहां का बड़ा स्तूप उनका खड़ा किया हुआ है। वे चाहते थे कि कोई अँगरेज़ यह ढांच